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कब्ज को हल्के में न लें हमारे बुजुर्ग
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में 50-52 की उम्र तक सब ठीक चलता है, लेकिन आयु जैसे 55 पहुंचती है, व्यक्ति अपने को साध न पाये तो रोग अपना प्रभाव दिखाने लगते हैं। 65 वर्ष और उससे अधिक की आयु तो बीमारी सम्बन्धी आयु ही बनकर सामने आ जाती है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ कि 65 या उससे अधिक उम्र के तीन चौथाई व्यक्ति बीमारियों के साथ जीवन जीते हैं। इसका कारण है स्वस्थ जीवनशैली की कमी।
65 वर्ष उम्र के व्यक्ति में वजन की कमी, वजन में वृद्धि, बहरापन, घटती हुई दृष्टि, गतिशीतलता में कमी, डिप्रेशन, याददास्त के कमजोर होने से लेकर कब्ज आदि के दबाव जैसे अनेक लक्षण दिखने लगते हैं। इसके साथ ही अनेक बुजुर्ग मानसिक समस्याओं से भी ग्रस्त होते देखे जाते हैं। पर लेख में हम बात करेंगे वृद्धों में पेट सम्बन्धी शिकायत की, जिसमें कब्ज प्रमुख समस्या बनकर उभर रही है।
कब्ज का दुष्प्रभाव:
वृद्धों में नियमित रूप से पेट साफ न होना, इसी प्रकार मल सख्त होना अथवा मत त्याग में अनियमितता। दो-तीन दिन में एक बार पेट साफ होना। सरदर्द, थकान, भूख न लगना आदि लक्षण उन्हें विशेष परेशान करते हैं। जिसके कारण वे चिड़चिड़ेपन के शिकार भी होने लगते हैं। कब्ज उन्हें इस कदर तोड़ देता है कि धीरे-धीरे उनकी आंतों में रुकावट, हार्निया, गुदा में बवासीर या दरारें, थायराइड ग्रंथियों से अपर्याप्त ड्डाव, शरीर में कैल्शियम की अधिकता, पोटैशियम की कमी (हाइपोकेलेमिया), मानसिक अवसाद जैसे रोग भी आ धमकते हैं। बार-बार पेशाब जाना, अनिद्रा जैसे रोग भी उनके इस कब्ज के कारण आ धमकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि बुजुर्गों में लम्बे समय तक कब्ज बने रहने के कारण उनके समूचे स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। दीर्घकालिक कब्ज हो जाय तो तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए। क्योंकि ये जीवन के लिए भी खतरा बन सकता है।
मल त्याग में कठिनाईः
गौर करेंगे कि मल त्याग के समय जब सामान्य व्यक्ति को जोर लगाना पड़े तो इससे उनके सीने में दर्द, मस्तिष्क में अस्थायी रूप से रक्त आपूर्ति की कमी होने के साथ उन्हें बेहोशी का दौरा पड़ सकता है। ऐसे में सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि एक बुजुर्ग को कब्ज से कितनी तकलीफ होती होगी। विशेषज्ञों का मत है कि दीर्घकालिक कब्ज में रोगी के सख्त व लेसदार मल के कारण गुदा के भीतर दरारें आ सकती हैं। उसमें खून बहना शुरू हो सकता है। मलाशय में सूजन के काराण पेशाब के रास्ते में रुकावट आ सकती है। ऐसे में कई रोगी अपने कब्ज को लेकर परेशान होकर बड़ी मात्र में पेट साफ करने वाली दवायें लेना शुरू कर देते हैं। इससे उन्हें नुकसान भी पहुंच सकता है।
उपचार सम्बन्धी सावधानीः
बुजुर्ग रोगियों को दवा देने से पहले कब्ज के कारणों का पता लगाना जरूरी है। यदि किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्य कारण विशेष से कब्ज है तो उस कारण को दूर किया जाना चाहिए। कई बार थायराइड ग्रंथि की सक्रियता का कम होना, अवसाद, पानी की कमी इत्यादि के कारण भी कब्ज हो जाता है, ऐसे में इनका उपचार लेकर कब्ज दूर कर लेना चाहिए। यदि खाने-पीने में तरल पदार्थ की कमी है, तो तरल की मात्र अधिक बढ़ा लेनी चाहिए। चिकित्सकों का मत है कि एक वृद्ध व्यक्ति को दिन में कम से कम 2 से 2-5 लीटर तरल पदार्थ अवश्य लेना आवश्यक है।
रेशेदार आहारः
कब्ज को रोकने में आहार में रेशेदार पदार्थों की मौदूदगी महत्वपूर्ण है। रेशेदार पदार्थ पानी को सोखते हैं और आतों में भोजन को देर तक बनाए रखते हैं, जिससे आतों की सफाई होती है। अतः प्रौढ़ व वृद्ध लोगों को प्रतिदिन अपने भोजन में 40 ग्राम रेशा अवश्य सामिल करना चाहिए। हरी सब्जियों, पौधों के डंठलों, पत्तागोभी, सहजन, करेले, खजूर, आम, अंजीर, अमरुद और सेव में काफी रेशा होता है। काली मिर्च, इलायची, अजवाइन, मेथी आदि में भी काफी रेशा होता है। जो बुजुर्गों के स्वास्थ्य लिए बेहतर व घुलनशील माने जाते है। भोजन में मौजूद रेशा कब्ज को रोकता है।
रेचक सम्बन्धी प्रयोगः
इसी के साथ इसबगोल जैसे पदार्थ जो पानी सोखते हैं तथा मल को स्थूल बनाते हैं। इन्हें पर्याप्त पानी के साथ लिया जाना चाहिए। रेचक की दृष्टि से भी ये लम्बे समय तक उपयोग के लिए सुरक्षित व अनुकूल हैं। पर जिन रोगियों को छोटी या बड़ी आंत में अवरोधक दरारें हैं, उन्हें इनका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। रेचक में अरंडी का तेल भी ज्यादा तेजी से काम करता है, लेकिन इसे लम्बे समय तक प्रयोग नहीं करना चाहिए। कब्ज दूर करने में एनिमा भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एनिमा द्वारा भीतर गया हुआ पानी मल के पिंडो के टुकड़े करता है तथा मलाशय की दीवारों को फैलाने में मदद करता है जिससे मलत्याग में आसानी होती है।
विशेष ध्यान देने वाली बात है कि एनिमा भी चिकित्सक की सलाह पर ही लेना चाहिए। क्योंकि लम्बे समय तक एनिमा लेने से मलाशय में घाव, रक्तड्डाव भी हो सकता है। शोध बताते हैं कि फाइबर कब्ज मिटाने के लिए बहुत कारगर साबित होते हैं। अतः यह आहार के लिए एक अच्छा विकल्प है।
योग-व्यायाम: व्यायाम करने से शक्ति, गतिशीलता और संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है। शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। अतः दैनिक व्यायाम, प्रातःभ्रमण, पेट सम्बन्धी कसरत एवं व्यायाम सहित अनेक सरलता से किये जाने वाले योगासन का अभ्यास जरूरी है।
वृद्धों वयस्कों के लिए मस्तिष्क की गतिविधियां सकारात्मक बनी रहे, इसके लिए मस्तिष्क का व्यायाम करें। साथ ही बागवानी, पेंटिंग जैसे कार्य अपने शौक में शामिल करें। अपने प्रियजनों के साथ संवाद बनाये रखें, जिससे अपनेपन, अकेलापन और अवसाद की सम्भावना कम हो। सामुदायिक कार्यक्रमों और अन्य सामाजिक गतिविधियों जैसे सत्संग, गुरु सेवा, मंत्र जप, ध्यान, सिमरन, गुरु चर्चा में भागीदारी भी लाभदायक साबित होता है।
गुणवत्ता भरी नींद: शोधकर्ताओं ने पाया है कि कम नींद से बुजुर्गों को हृदय रोग और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली का खतरा बढ़ जाता है। नींद की कमी व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करके थकान पैदा करती है। अतः हर बुजुर्ग को अच्छी नींद मिले, यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
Posted 2 years ago by Administrator
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